पहाडै खेट्टी
गेदान गेडा खाेये गै
साङलाे लाइ भितर: खाेणेइ गै
हात साद्द्या काेइ नाइ
आफू झानी रै माैर्या कठा:
घाँस काटि लिउनाै लाेटिमर्यानकि
बटामुणि आफुआफुइ कुरडि गद्दिगद्दि
जेउडाे कण्णमुणि बाद्याे छ
हात्तै आँसी, कुट्टाइनि गेडा
हणैनि झुल्तुर्या कँथणा
पहाडै खेट्टीका बाैस्या परदेश
खेट्टी एकली छ घरदेश
उ एकली छ वनवेत:
उ एकली छ डाँङा खाेला खेत:
खेट्टी माैर्या कठा: धुङ्ङ्या रुखैनी
खुट्टि खसड्कि तल्ला गाेधरा:
निझर्कि भै ततिउनी
कठा: बिच न काँइ बठेइ झना झाे
न काँइ बठेइ समाैना झाे
खेट्टीका लाेटिमर्या तसाइ रया
गँवल्या कुरडि गद्दान
खेट्टीका गेदा ननाइ मुलिग्या
बाैस्या परदेश: गेदान छाडि गै
काेइ भुण्णान खेट्टी मरि गै
काेइ भुण्णान बिचारी साराइ दु: ख थ्या
गेदा मुलिया लै आफू तरि गै
पहाडै खेट्टी बेलि लै यिस्याइ मरिन्
आज लै मद्दुइ पसिरैछन् अभाेकालः
पहाडाे जीवन यिसाेइ छ
देशमाइ जति समृद्धि आया लै
पहाडै खेट्टी यिसेरी मद्द लार्यान
नियति यिसिछ पहाडै खेट्टीनाे ।
✍️ रमेश पन्त – मीतबन्धु