उठ – जाग सबै जन्ता, लैंगिक हिंसा अन्त गरौं है।
महिला पुरुष सबै मिली, यो विकृति बन्द गरौं है ।।
हिमालचूली अल्को होइझौ, हिमतालै छल्किझौ बरीलै ।
शान्ति होइझौ घर-घरमा, बेदना हल्किझौ बरीलै ।।
आफ्नुइ जुङ्गो माथि राखी, स्वानी-बैकू लड्डान बरीलै ।
रस्साकस्सी टुट्या पछा, हिंसामा पड्डान बरीलै ।।
ओतु होइझौ बसुनाकी, दुई छाक्की भात होईझौ बरीलै ।
इज्बुवाका जन्म्याघर, चेलीको थात् होईझौ बरीलै ।।
बौस्या भुन्छ मुँई बडो हूँ, स्वानी मुँई की कमछौ बरीलै।
कोई नानु नाँई कोई ठूलो नाँई, बराबरी हम्छौ बरीलै ।।
बुढो भुन्छ बिद्याई ठूलो। बुढी त धनै हो बरीलै
गेदो भुन्छ पब्जी ठूलो, कि ठूलो मनै हो बरीलै ।।
मुँई बडो-मुँई बडो भुण्णा, हुन्छी चराचरी बरीलै।
पड्यालीका हलु बल्लु, दुबै बराबरी बरीलै।।
संसारैमा काँई बनेन, मन बाधुन्या जेल बरीलै।
द्वन्द बढुन्या हिंसा घट्न्या, सबै मनका खेल बरीलै।।
साथी जोड्या फेसबुकमा, टिकटँकमा मन फस्या बरीलै।
भौतै घर उजडी गया, भौतुन्का घर बस्या बरीलै ।।
रितिथीति सब संस्कृति, सबको मान रैझौ बरीलै ।
घर-घरमा सुख शान्ती होईझौ, देशको बिकास होईझौ बरीलै ।।
नर बिना नारी अधुरी, नारी बिना नर बरीलै।
हाँसी-खेली रमाई दुबै, जीन्दगी भोग गर बरीलै ।।
उठ-जाग सबै जन्ता, लैंगिक हिंसा अन्त गरौं है।
महिला पुरुष सबै मिली, यो विकृति बन्द गरौं है ।।
प्रेम सिंह बिष्ट
दशरथ चन्द नगरपालिका- १० बैतडी